दिवाली के दिए जलाने लगे है लोग घरो में,
हम बिजली की रौशनी में नूर हुए बैठे है|
पैसे की भागमभाग में ऐसे उलझे है,
माँ पापा और घर से दूर हुए बैठे है ||
जाने कब अकेले हो गए भीड़ में चलते चलते,
खुद ही में उलझे उलझे से रहते है|
जाने किस बात का घमंड हुआ है,
किस सल्तनत के हुज़ूर हुए रहते है ||
कहने को जीते है अमीरो का जीवन,
पर अपने मन से फ़कीर हुए बैठे है|
मुड़ के लौट जाने का मन बोहोत करता है,
पर पैसा कमाने का फितूर लिए बैठे है ||
हम बिजली की रौशनी में नूर हुए बैठे है|
पैसे की भागमभाग में ऐसे उलझे है,
माँ पापा और घर से दूर हुए बैठे है ||
जाने कब अकेले हो गए भीड़ में चलते चलते,
खुद ही में उलझे उलझे से रहते है|
जाने किस बात का घमंड हुआ है,
किस सल्तनत के हुज़ूर हुए रहते है ||
कहने को जीते है अमीरो का जीवन,
पर अपने मन से फ़कीर हुए बैठे है|
मुड़ के लौट जाने का मन बोहोत करता है,
पर पैसा कमाने का फितूर लिए बैठे है ||
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