कौन हु मैं, खुद को खोजता फिरता हु,
समाज की भीड़ में एक चेहरा बनने की कोशिस में..
एक छोटे से साये की तरह हु उजाले में दीखता हु,
और सिमट जाता हु डरकर अंधेरे के आगोश में..
घिरा हु असंख्य अजनबीओ से,
जिनकी खुद कोई पहचान नहीं..
भीड़ के रूप में जाने जाते है ये सब लोग,
अकेले आगे निकल आने की हिम्मत नहीं..
अगर कोई दौड़ कर आगे निकल भी जाए,
तो समझते है वो इनका अपना नहीं..
जाने क्यों डरते है चार लोगो से,
जो सायद अर्थी तक को कन्धा देंगे नहीं..
मुझे क्या मैं चलता रहूँगा अपने धर्म पथ पर,
निकल जाऊंगा अकेला भीड़ से छट कर.
.
अपनी अलग एक पहचान बनाने,
फिर इस भीड़ को एक राह दिखाने..
समाज को सायद समझ नहीं आएगा,
इंसान जाने कब तक आपस में लड़ लड़ मरजाएगा..
कोई आँखे खोलने को त्यार ही नहीं,
गहरी खाई पर पुल है देखने को कोई त्यार ही नहीं..
कब तक अंधे बन के दुनिया से पिछड़ते रहोगे,
कब तक जातिवाद में फस कर आपस में लड़ते रहोगे..
जागो और अपनी एक पहचान बनाओ,
जातिओ से ऊपर उठ कर हिन्दुस्तानी कहलाओ..
मैं सायद आज कुछ भी नहीं, लेकिन कल जरूर कुछ बन जाऊंगा,
करोडो की भीड़ से निकलकर अपनी खुद की पहचान बनाऊंगा..
समाज की भीड़ में एक चेहरा बनने की कोशिस में..
एक छोटे से साये की तरह हु उजाले में दीखता हु,
और सिमट जाता हु डरकर अंधेरे के आगोश में..
घिरा हु असंख्य अजनबीओ से,
जिनकी खुद कोई पहचान नहीं..
भीड़ के रूप में जाने जाते है ये सब लोग,
अकेले आगे निकल आने की हिम्मत नहीं..
अगर कोई दौड़ कर आगे निकल भी जाए,
तो समझते है वो इनका अपना नहीं..
जाने क्यों डरते है चार लोगो से,
जो सायद अर्थी तक को कन्धा देंगे नहीं..
मुझे क्या मैं चलता रहूँगा अपने धर्म पथ पर,
निकल जाऊंगा अकेला भीड़ से छट कर.
.
अपनी अलग एक पहचान बनाने,
फिर इस भीड़ को एक राह दिखाने..
समाज को सायद समझ नहीं आएगा,
इंसान जाने कब तक आपस में लड़ लड़ मरजाएगा..
कोई आँखे खोलने को त्यार ही नहीं,
गहरी खाई पर पुल है देखने को कोई त्यार ही नहीं..
कब तक अंधे बन के दुनिया से पिछड़ते रहोगे,
कब तक जातिवाद में फस कर आपस में लड़ते रहोगे..
जागो और अपनी एक पहचान बनाओ,
जातिओ से ऊपर उठ कर हिन्दुस्तानी कहलाओ..
मैं सायद आज कुछ भी नहीं, लेकिन कल जरूर कुछ बन जाऊंगा,
करोडो की भीड़ से निकलकर अपनी खुद की पहचान बनाऊंगा..
Comments
Post a Comment