दिवाली के दिए जलाने लगे है लोग घरो में, हम बिजली की रौशनी में नूर हुए बैठे है| पैसे की भागमभाग में ऐसे उलझे है, माँ पापा और घर से दूर हुए बैठे है || जाने कब अकेले हो गए भीड़ में चलते चलते, खुद ही में उलझे उलझे से रहते है| जाने किस बात का घमंड हुआ है, किस सल्तनत के हुज़ूर हुए रहते है || कहने को जीते है अमीरो का जीवन, पर अपने मन से फ़कीर हुए बैठे है| मुड़ के लौट जाने का मन बोहोत करता है, पर पैसा कमाने का फितूर लिए बैठे है ||
The point of view towards the life is not always the same, you must think out of box to get over the limits. I write here short stories, poems, Social Articles, Some news evaluation or spiritual thoughts.